Posts

Showing posts from 2018

Friendship By Chance

Image
#Blogpost:- 49 One of those rare friends that he found lately this year and would like to cherish it for a lifetime. All friends although are strangers at the beginning and some go on to become the heart and soul to each other's joys and sorrows while some just stop in the midway with the thought of having a better choice at hand. This friendship turns out to be a little unusual in many ways, as both them had no clue of each other and met just like the earth met the shooting stars , a bit of her broke and a whole of him burnt. Things change and so do situations so one must realise that good and bad is a part of life and the absence of good times makes us realize the importance of good times. The experience that he carried with himself was that he ha d been through lots and lots of friendship failures and he believed that it's okay to fail than to live an unfilullfilled life full of regrets. With each failure he learnt, he understood what friendship is all a

मैं बनूंगा बाबा की बैसाखी

Image
#Blog post no:- ४८ कंधे पर वो जब मुझे घुमाया करते बेसब्री से गर्मी की छुट्टियों का इंतज़ार किया करते देख कर मुझे जो खिल खिला कर हंस पड़ते वहीँ तो हैं मेरे बाबा एकलौते ढलती शाम और मेरी बेचैनी उनको देखने की दूर उनकी साइकिल देख कुछ हलचल सी होती मुझमें आते वो सेव बुनिया जो लेकर अपने झोले में बैठकर साथ उनकी हाथों से खाना वो बुनिया भी अमृत लगता रात को नींद न आती तो पंखा डुलाकर हमें सुलाते वो लोरी बहुत अलग थी जो बाबा थे हमे सुनते भोर होते ही साथ नदी पर जाते लौटते बख्त चाचा के दूकान से बर्फ का गोल चूसते आते अब जो बड़ा हो गया हूँ समय से लड़ना जो सीख रहा हूँ करवटें बदल बदल कर रातें हैं कटती बाबा आपकी लोरी है बड़ी याद आती एक रोज़ सब कुछ बदल सा गया जब स्टेशन पर उतर कर हमने उन्हें न पाया पहुंचा घर तो देखा चार पायी पर लेटे थे वो नम थी आँखें फीकी मुस्कान अब भी दे रहे थे वो भागता हुआ पहुंचा जब उनके पास मैं बोल पड़े वो चल नहीं सकता अब मैं आंसुओं को अंदर दबाकर हंस पड़ा मैं कह दिया चल पड़ोगे आप जब बनूँगा आपका बैसाखी मैं अब समय उनके इर्द गिर्द ही हमारे बीतते बीते दिनों की

बचपन मैं अपना पीछे कहाँ छोड़ आया

Image
ब्लॉग पोस्ट :- ४७ बच्चपन मैं अपना कहाँ पीछे छोड़ आया ज़माने से कदम मिलने के चक्कर में बहुत आगे निकल गया बचपन दरवाज़े पर खड़ा पुकार रहा था खुशियों की गठरी लाया हूँ ऐसा बता रहा था मैं स्तब्ध खड़ा बस दूर से उसे नीहार रहा था तू मेरा बचपन था मेरी खुशी की एकलौती चाभी जब बरसात में नाउ की कश्ती में ही थी अपनी मस्ती जब टूटते सिर्फ खिलोने थे और रोते सिर्फ घुटने छिलने पर थे उम्र के साथ बड़े हो जाओ ये सुनते हुए आज बहुत आगे निकल आए अब समझ आया की खुशियाँ तो सिर्फ बच्चपन में थे पाए वो आसमान में हवाई जहाज के पीछे भागना अब पीछे छूट गया है पैसे कमाने की होड़ में न जाने कहाँ मेरा बच्चपन मुझसे रूठ गया है चल अपने उस खिलोने वाले मोहोब्बत को जियें दोस्तों के सामने अपनी मेहेंगी गाड़ी दिखा कर फिर इठलायें ऐ ज़माना बड़ा कर के तूने सिर्फ हमें छुपाना सिखाया है कभी तकिये में अपने आँसु, तो कभी होटों पर लव्ज़ कहता है मुझसे वो कि तेरा अब बगल की आंटी के घर से अमरूद तोड़ना उनका सपना ही रह गया है सच्च कहूँ , सच्च कहूँ तो वक़्त अब उनके पास भी थोड़ा ही रह गया है चल फिर से पानी में भीगते हैं ,भीग कर माँ