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मॉडर्नाइजेशन या संस्कृति का मर्डर

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ब्लॉग पोस्ट :- ४४ जब देखा मैंने आज छोटे छोटे बच्चों को जीने मारने की कसम खाते तो अंदर से थोड़ा सा सहम सा गया, क्या हमारी संस्कृति धीरे धीरे कभी न वापस लौट कर आने वाली राह की ओर बढ़ रही है ? लोग कहते तो हैं कि हिंदी हैं हम हिंदी हैं हम फिर क्यों उस व्यक्ति को हीन भावना से देखते हैं जो अंग्रेजी की जगह हिंदी में वार्ता करना चाहता है? क्यों हम अंग्रेजी को समय की मांग की नज़र से देखते हैं? क्या हिंदी नहीं है समय की मांग? हर देश की एक राष्ट्र भाषा होती है पर हमारे देश में क्यों अंग्रेजी को इतनी महत्व दी जाती है ? क्या ऐसा तो नहीं कि हम अपने ही देश में गैर बन गए हैं , या फिर ऐसा है कि हम आज भी अंदर से अंग्रेजो के गुलाम ही बने हुए हैं ? हर देश की एक संस्कृति होती है ,और भारत देश की संस्कृति तो सबसे अदभुद और पौराणिक है जिसे बाहर के लोग सीखने और देखने के लिए आते हैं पर अपने ही देश वासियों ने अपनी संस्कृति को पराया कर दिया है । ये जो इतना इतराते हैं आप टूटी फूटी अंग्रेजी ही बोल कर कभी सोंचते हैं पीठ पीछे कितने बड़े मजाक के पात्र बनते हैं आप? उसी अंग्रेजी की जगह अगर हिंदी भाषा का प्रयोग करते