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ज़िन्दगी जी रहे हो या झूझ रहे हो

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#ब्लॉग पोस्ट :- ४५ ज़िन्दगी ने पूछा कैसे हो ? कह दिया उसने भी ठीक हूँ । फिर से दोबारा वही सवाल पूछे गए औऱ कुछ देर तक जवाब भी वही रहे । पांचवी बार उसी सवाल को सुनकर वो रो पड़ा । फिर शुरू किया उसने बताना निराश हूँ, थका हूँ, हारा महसूस करता हूँ कर सकता है क्या इस बारे में कुछ तू ? हंसते हुए ज़िन्दगी ने भी कह दिया, दूसरों के लिए जीने मरने के वादे करते हो खुद के लिए थोड़ा सा साहस भी न बचा पाए उसने निराश होकर जवाब दिया :- सब कुछ किसी गैर पर लूटा कर आ रहा हूँ, जिसे कभी मैंने अपना समझ बैठने की भूल कर दी थी । न जाने कब कैसे और क्यों मैंने अपने को खो दिया , मीठे ज़हर का घोल शहद समझ कर पीता गया । जब नींद से जागा तो तू बहुत दूर निकल गयी थी, रोशनी ढूंढ़ली सी पड़ गयी थी । मैं तुम्हे अकेला छोड़ कहाँ जाऊंगी ? ज़िन्दगी ने उसपर हाथ फेरते हुए कहा । जब तक तुम हार नहीं मानते हार और जीत  तुमसे समान दूरी पर होते हैं । उठो  साहस करो, लड़ो और एक बार खुद के लिए हमें पाकर दिखाओ ।