बेटे भी होते हैं घर से विदा
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उन्हें शायद ये नहीं पता कि अब जब हम घर जाएंगे तो लोग , "बेटा कैसे हो ?" पूछने से पहले जाने कि तारीख पूछेंगे, की वापसी कब की है, कितने दिनों के लिए आए हो । ये बातें एहसास दिलाने के लिए काफी है कि अब तुम अपने घर पर नहीं जाओगे बल्कि एक मेहमान के जैसे जाओगे , जहां लोग मीठी, प्यार बातें करेंगे , तुम्हे हर सुख सुविधा देंगे जिससे तुम्हे परेशानी ना हो, तुम्हारे पसंद के बेहतरीन व्यंजन परोसे जाएंगे , पर अब वो सुकून नहीं होगा जो पहले हुआ करता था । अब घर जब तुम जाओगे ,आने का दिन तुम्हे पहले से ही रुलाने लगेगा , मां होगी जो अपने आंसुओं से बयान कर भी देगी पर पापा तो बस नज़रें चुराते समान जुटाते रहेंगे ,जब तक वक़्त आएगा कि दो पल बैठ कर तुम बात कर पाओ, अफसोस जाने का दिन आ जाएगा , अब इन बातों को तुम अपनी झोली में बांधकर कर अपनी झोली को और थोड़ा भारी बनाकर अगली बार के लिए लेते आना । लोगों को नहीं पता कि अंजान शहर में , जब ठंडी रोटी वो खाता है तो घी के जगह अपने आंसुओं से उन्हें भिगोता है। जब घर वालों की याद आती है , तो तकिए को कस के पकड़ कर सो जाया करता । फोन पर सब ठीक है, बोलते बोलते आंसुओं को वो छिपाने लगता , और वो कहते हैं सिर्फ बेटियां ही घर से विदा होती हैं ।
उन्होंने बेटों को तो सिर्फ लड़ते , झगड़ते खेलते ही देखा है, क्यूंकि पापा हो या बेटा आंसुओं का बाहर आना निषेध है, कुछ ऐसा ही लगता है । घर से बाहर , पापी पेट को पालने के चक्कर में वो , परिवार के संग त्योहार हो या फिर साथ घूमने जाने की हो बात, सब शौख पूरे हो गए अब यही समझ कर मन मार लेता है ।
साहब बेटे भी घर से विदा होते हैं , चुपके से , हंसते हंसते , लोगों की नजरों से दूर , पर ये ज़माना कहां समझ पाएगा ।।
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