बचपन मैं अपना पीछे कहाँ छोड़ आया



ब्लॉग पोस्ट :- ४७
बच्चपन मैं अपना कहाँ पीछे छोड़ आया
ज़माने से कदम मिलने के चक्कर में बहुत आगे निकल गया

बचपन दरवाज़े पर खड़ा पुकार रहा था
खुशियों की गठरी लाया हूँ ऐसा बता रहा था

मैं स्तब्ध खड़ा बस दूर से उसे नीहार रहा था
तू मेरा बचपन था मेरी खुशी की एकलौती चाभी

जब बरसात में नाउ की कश्ती में ही थी अपनी मस्ती
जब टूटते सिर्फ खिलोने थे और रोते सिर्फ घुटने छिलने पर थे

उम्र के साथ बड़े हो जाओ ये सुनते हुए आज बहुत आगे निकल आए
अब समझ आया की खुशियाँ तो सिर्फ बच्चपन में थे पाए

वो आसमान में हवाई जहाज के पीछे भागना अब पीछे छूट गया है
पैसे कमाने की होड़ में न जाने कहाँ मेरा बच्चपन मुझसे रूठ गया है

चल अपने उस खिलोने वाले मोहोब्बत को जियें
दोस्तों के सामने अपनी मेहेंगी गाड़ी दिखा कर फिर इठलायें

ऐ ज़माना बड़ा कर के तूने सिर्फ हमें छुपाना सिखाया है
कभी तकिये में अपने आँसु, तो कभी होटों पर लव्ज़

कहता है मुझसे वो कि
तेरा अब बगल की आंटी के घर से अमरूद तोड़ना उनका सपना ही रह गया है
सच्च कहूँ , सच्च कहूँ तो वक़्त अब उनके पास भी थोड़ा ही रह गया है

चल फिर से पानी में भीगते हैं ,भीग कर माँ की डांट सुनते हैं
अनजान शहर में न तू किसी का न तेरा कोई चल घर चल कर प्यार के नए रंग बुनते हैं

देखते देखते मुझसे रहा न गया
मैं भागते हुए उसके कदमो पर गिर गया
बरसों बाद जैसे सब कुछ मिल गया
आंखे खुलीं सपना टूटा
और ऐसा लगा सब कुछ छिन गया

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