उम्मीद
BlogPost 43:- एक उम्मीद थी मुझे उस हार के बाद भी जीतने की गिर कर फिर से उठ खरे होने की एक उम्मीद थी मुझे सूरज के नए किरणों की उस काली अंधेरी रात के बाद जिसने छीन ली थी मुझसे जीवन का सवाद एक उम्मीद थी मुझे उस रुआंसे चेहरे पर हंसी लाने की कर कुछ ऐसा जाऊं की फिर कभी वो दिन न आये मेरे माँ- पिताजी फिर से न रोएं एक उम्मीद थी मुझे उसके लौट आने की रूठ कर जो गयी थी, फिर वो लौट आएगी पर आती कैसे कर ली थी उसने गलतफहमी से दोस्ती एक उम्मीद थी मुझे खुद से भी जो गलती पहले की, फिर न दोहराऊं उसे मैं सीख उससे लेकर तरक्की खूब करूँ मैं एक उम्मीद थी मुझे की जीत कर आएंगे वो घर विषम परिस्थि में लड़ेंगे, न रहेगा दुश्मन का डर तिरंगा लहरायेंगे ऊंचा और होगा उनपर फक्र एक उम्मीद थी मुझे वो लौट कर घर को आएगा फिर से अपनी बहादुरी की कहानी सुनाएगा माँ के हाथ की बनी रेवड़ियां और सेवइयां खायेगा एक उम्मीद थी मझे की मेरा देश महान कहलायेगा जब जाती प्रथा धर्म सब एक हो जाएगा वो दिन ज़रूर आज नहीं तो कल ज़रूर आएगा एक उम्मीद थी मुझे दोस्ती प्यार से जीत जाएगी सालों की यारी चंद प्यार के शब्दों स